जब-जब तुमको देखा मैंने
जाने क्या-क्या सोचा मैंने,
रूप के इस गहरे सागर में
कितने मोती कितने गहने।
ना जाने क्या हो जाता है
दूर कहीं मन खो जाता है,
मन के सूने गलियारे में
आ जाओ तुम पायल पहने।
सुबह की लाली जैसी तुम हो
धान की बाली जैसी तुम हो,
हम तो सुध-बुध खो देते हैं
जाने क्या है रूपनगर में।
अपने में तुझको मैं देखूं
तुझमें मैं अपने को देखूं,
मुझमें-तुझमें फर्क यही है
तू मंजिल और मैं सफर में।
जाने क्या-क्या सोचा मैंने,
रूप के इस गहरे सागर में
कितने मोती कितने गहने।
ना जाने क्या हो जाता है
दूर कहीं मन खो जाता है,
मन के सूने गलियारे में
आ जाओ तुम पायल पहने।
सुबह की लाली जैसी तुम हो
धान की बाली जैसी तुम हो,
हम तो सुध-बुध खो देते हैं
जाने क्या है रूपनगर में।
अपने में तुझको मैं देखूं
तुझमें मैं अपने को देखूं,
मुझमें-तुझमें फर्क यही है
तू मंजिल और मैं सफर में।